गर्व से कहो हम हिन्दू हैं |


गर्व से कहो हम हिन्दू हैं.... !
हिन्दू समाज में जब जब भी धर्म आधारित मुद्दों पर चर्चा होती है , सामान्यतः लोग दो श्रेणियों में बंट जाते हैं एक अज्ञानी मानवतावादी दूसरा कट्टर हिन्दू !! मैंने पहली श्रेणी के बंधू के लिए “अज्ञानी” इसलिए लगाया क्योंकि हिन्दू होना और मानवतावादी होना अपने आप में पर्यायवाची हैं नाकि विरोधाभासी , पर चूंकि बचपन से ही हमारी वामपंथी शिक्षा व्यवस्था से ये सिखाया जाता है की पहले इंसान बनो धार्मिक नहीं ,इसलिए ऐसे लोगों के मन में धर्म के प्रति एक भय मिश्रित छवि निर्मित हो चुकी होती है , धार्मिक होना कोई गुनाह सा लगने लगता है , वो भी बिना अपने धर्म को पढ़े और समझे !!
मैंने दूसरी श्रेणी के व्यक्ति के साथ कट्टर इसलिए लगाया क्योंकि धर्म पर श्रद्धा रखने वालों को दुनिया ऐसा ही मानना चाहती है और दुनिया ऐसा मानना चाहती है तो हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं ,क्योंकि इतिहास गवाह है की ज्यादातर धर्मों में जब जब श्रद्धा अंध श्रद्धा में बदली , तब तब रक्तपात हुआ है और आज भी हो रहा है , इसलिए हमारे हजारों सालों के इतिहास और शासन के बूते हम ये जरूर सिद्ध कर सकते हैं की एक कट्टर हिन्दू ही मानवता की सच्ची परिभाषा में खरा उतर सकता है !!
“गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” की इस पूरी चर्चा को मैंने एक काल्पनिक वार्तालाप में परिवर्तित करने की कोशिश की है :-
अज्ञानी :- गर्व से कहो हम हिन्दू हैं इसका क्या मतलब है ?
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कट्टर :- धर्म एक प्राचीन व्यवस्था है ,हर व्यक्ति या उसके पूर्वज किसी न किसी धर्म से कभी ना कभी जुड़े थे ,आप हिन्दू हैं इसे आप चाहकर भी अपने से अलग नहीं कर सकते , आपके माता पिता हिन्दू थे,आपके पूर्वज भी हिन्दू थे,फिर उस पहचान पर गर्व करने में क्या बुराई है ? 
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अज्ञानी :- नहीं मैं सिर्फ एक इन्सान हूँ , किसी धर्म में नहीं बंधना चाहता मैं 
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कट्टर :- जब तुम पैदा हुए थे तब तो नंगे ही आये थे , फिर आज कपडे क्यों पहन रखे हैं , जैसा ईश्वर ने भेजा था वैसे ही रहो !! कहने का आशय ये है की धर्म मनुष्य को सभ्य बनाता है, यहीं से सभ्यता और संस्कार की बात शुरू होती है !!
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अज्ञानी :- ठीक है , पर मैं हिन्दू हूँ तो  इसमें गर्व करने की क्या बात है , ऐसा करना क्या मुझे समाज के दूसरे वर्ग से अलग नहीं खड़ा कर देता ?
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कट्टर :- क्या अपने हिन्दू होने पर गर्व करने से तुम किसी और को गाली दे रहे हो या किसी और को नीचा दिखा रहे हो ?
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अज्ञानी : नहीं पर ऐसा कहना परोक्ष रूप से तो उकसाने वाला ही हुआ ? 
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कट्टर :- तुम अपने पिता को दुनिया का सबसे अच्छा पिता मानते हो क्या इसका ये मतलब है की तुम बाकियों के पिता को गाली दे रहे हो ? नहीं ना , बिलकुल वैसे ही ! जहाँ तक बात है उकसाने वाली तो दिक्कत ये है की सदियों से हिन्दू समाज को बिखरा हुआ देखने की आदत सी हो गयी है,इसलिए धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वाले तत्वों को इससे तकलीफ होती है की हिन्दू कभी इकठ्ठा होने की सोचे भी , जाती आधारित या सम्रदाय आधारित वोट बेंक की राजनीती करने वालों का गणित बिगड़ जाता है अगर हिन्दू समस्त जातिभेद भुला कर एकजुट हो जाये !!
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अज्ञानी :- मेरे हिसाब से तो धर्म नाम की चीज़ ही इन्सान को इन्सान से अलग करने के लिए बनी है , इसलिए किस बात का गर्व करें ?
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कट्टर :- तुम अपने धर्म के बारे में क्या क्या जानते हो ? क्या क्या साहित्य , ग्रन्थ , पुराण पढ़ा है तुमने ? किन किन महापुरुषों को मानते हो और उनकी कौन कौन सी पुस्तकें पढ़ी हैं ? कोई विदेशी तुम से तुम्हारे धर्म संस्कृति के बारे में पूछे तो कुछ बोल भी पाओगे ? 
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अज्ञानी :- कुछ खास नहीं पढ़ा और सांप्रदायिक साहित्य पढने में रूचि नहीं है मेरी 
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कट्टर :- मेरे अज्ञानी बंधू , सुनो , धर्म की परिभाषा हिन्दू मान्यता के अनुसार :-
यतोभ्युदय निह्श्रेयस सिद्धिः स धर्मः
अर्थात धर्म एक प्रकार की व्यवस्था है जो मनुष्य को अपनी इच्छाओं को संयमित करने को प्रोत्साहित करती है , एक आदर्श जीवन जीने का मार्ग देती है और समस्त भौतिक जीवन जीते हुए भी दैवीय तत्व अथवा शाश्वत सत्य की अनुभूति के लिए क्षमता प्रदान करती है !!
धारणात धर्ममित्याहु धर्मो धारयति प्रजाः
अर्थात वह शक्ति जो व्यक्तियों को एकत्रित लाती है और समाज के रूप में धारण करती है – धर्म है
कुछ समझे ?
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अज्ञानी :- हाँ पर हम धर्मनिरपेक्ष लोग हैं, इस समाज में कई धर्मों के लोग हैं , क्या उनको अकेला छोड़ दें ? 
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कट्टर :- पहले तो अपना ये मिथक तोड़ दो की प्रजा धर्मनिरपेक्ष होती है , कभी नहीं होती , शासक धर्मनिरपेक्ष हो सकता है , सरकार हो सकती है पर प्रजा कभी नहीं !! तुम्हारा धर्म कहता है सच बोलो , अच्छा आचरण करो , नारी का सम्मान करो, फिर धर्म निरपेक्ष होकर कैसा जीवन जीना चाहते हो ?
तुम्हारी दूसरी बात का जवाब , हिन्दू वेदों के अनुसार :-
एकं सत विप्राः बहुधा वदन्ति
अर्थात सत्य सिर्फ एक है जिसे अलग अलग ऋषि अलग अलग संत संप्रदाय अलग अलग तरीके से बखान करते हैं 
तो ये बताओ की हमारा धर्म लोगों को तोड़ने वाला कैसे हुआ ? ये तो समावेशी हुआ !! मैं अभी दूसरे धर्मों की तो बात ही नहीं कर रहा जो गैर धर्मियों (काफिर ) को अपना दुश्मन मान उनके खिलाफ जेहाद जैसी बात करते हैं !!
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अज्ञानी :- पर धर्म पर इतना जोर क्यों ? मानवता पर क्यों नहीं , वह तो सबको जोड़ सकती है 
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कट्टर :- ये श्लोक सुना नहीं हो तो आज सुन लो :-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माः कश्चित् दुःख भाग्भवेत
अर्थात सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों , सभी भद्र (अच्छा,शुभ) देखें, किसी को भी दुःख (के भाग) की प्राप्ति न हो।
अब ये बताओ क्या इसमें किसी धर्म के साथ भेदभाव की बात की गयी है या सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं के कल्याण की बात की गयी है ? इस मन्त्र से अच्छी कोई मानवता की परिभाषा हो सकती है ?

एक बात और , मानवता और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्द हमारे देश में इसलिए प्रचलित हुए क्योंकि समाज का एक वर्ग हमारे एतिहासिक और सांस्कृतिक स्तंभों और आदर्शों से अपने आप को अलग रखना चाहता है , जैसे पूरा देश शिवाजी और महाराणा प्रताप को अपना पूर्वज मानता है पर एक वर्ग है जो अपने को बाबर और औरंगजेब का वंशज मानता है , उनकी मजारों पर मत्था टेकता है , ऐसे बिखरे हुए समाज को हमारे असहाय नेताओं ने आज़ादी के बाद जोड़ने के लिए ये शब्द दिए !! उस बीमारी से लड़ने और उसे ठीक करने के बजाये उसके आगे नतमस्तक हो गए , हम बस ये बीमारी ठीक करना चाहते हैं !! 
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अज्ञानी :- हाँ पर सबको अपने आदर्श चुनने की आज़ादी होनी चाहिए , उसमे दिक्कत क्या है , हम किसी के साथ जोर जबरजस्ती तो नहीं कर सकते ?
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कट्टर :- जब देश आज़ाद हुआ तब धर्म के आधार पर हमारा बंटवारा हुआ , जो लोग अपने को भारतीय समाज और संस्कृति से नहीं जोड़ पा रहे थे वे पाकिस्तान चले गए , इसलिए जो लोग रुके रहे उनसे यही अपेक्षा की जानी चाहिए की वे मानते हैं की हमारे और उनके एतिहासिक महापुरुष एक हैं , हमारे और उनके सांस्कृतिक स्तम्भ और मूल्य एक ही हैं , हम और वे एक ही खून हैं !! हम एक दूसरा विभाजन नहीं होने देंगें इस देश का !!
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अज्ञानी :-अगर मानवता का विचार इस देश में मजबूत होता है तो दो अलग विचार वाले भी साथ रह सकते हैं ? 
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कट्टर :- तुम्हारी बात पर विश्वास करने का मन करता है पर इतिहास और वैश्विक साक्ष्य इसके बिलकुल उलट बोलते हैं, इतिहास पढो और देखो की जहाँ जहाँ धर्मांध मुस्लिम बहुसंख्य हुए हैं वहां वहां खून खराबा , कत्लेआम , जबरन धर्म पर्तिवर्तन हुए हैं , विश्व के वे देश जो कुछ साल पहले शांति से जीने वाले देश थे, अचानक सबसे अस्थिर देश हो गए क्योंकि वहां मुस्लिम जनसँख्या विस्फोट हुआ !! सच ये है की मानवता और धर्मनिरपेक्षता इस देश में इसलिए चल पा रही है क्योंकि हिन्दू बहुसंख्यक है , जिस दिन इसके उलट हुआ, उस दिन ये सारे सिद्धांत धरे के धरे रह जायेंगें !!
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अज्ञानी :- आपने तो हिन्दू धर्म की इतनी तारीफें कर दीं , पर हिन्दू धर्म के नाम पर भी कितने दंगे हुए हैं , अन्धविश्वास हैं , पाखंड कर्मकांड हैं , आपके हिसाब से तो वो भी सब जायज़ होंगे फिर ?
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कट्टर :- धर्म “समाज” नाम की इकाई का आधार जरूर है पर धर्म की समझ व्यक्तिगत है, हर व्यक्ति अपने अपने स्तर से धर्म को समझता है और उसका पालन करता है , कर्मकांड, पाखण्ड उसी का हिस्सा हैं , इसलिए कोई भी इसे जायज़ नहीं ठहराएगा !! गुरु गोलवलकर के शब्दों में कुछ लोग “प्रतिक्रियात्मक हिन्दुत्व” में ज्यादा रूचि लेने लगे हैं बजाये हिंदुत्व को अपनी जीवनशैली में आत्मसात करने के !! उदाहरण के लिए मुंबई में नमाज़ खुले में होने पर विवाद हुआ तब जवाब में महाआरती का आयोजन होने लगा पंडाल बनाकर, ये कोई आदर्श हिन्दुत्व नहीं है , आशा है तुम समझे होंगे !! 
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अज्ञानी :- हाँ समझ रहा हूँ, बातें तो तुम आदर्श हिंदुत्व की कर रहे हो पर आस पास तो बस प्रतिक्रियात्मक हिंदुत्व ही दिख रहा है , जिसका एक “धर्मनिरपेक्ष” देश में कोई स्थान नहीं है 
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कट्टर :- पहले तो मैं आपकी इस भूल को सुधार दूं की इस देश का जन्म १९४७ में हुआ !! चंद नेताओं की बिसात नहीं की इतने बड़े राष्ट्र की अवधारणा भी रख सकें !! ये राष्ट्र हजारों वर्षों से हमारे ऋषि मुनियों के तप और आशीर्वाद की छत्रछाया में पला बढ़ा है , जिसकी परिभाषा हजारों वर्षों पूर्व लिखे इन श्लोकों में है
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं 
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र संततिः
अर्थात प्रथ्वी का वह भू भाग जो समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में है महान भारत कहलाता है और उसकी संतानों को भारतीय कहते हैं !! 
इसलिए इस बात को दिमाग से निकाल दीजिये की जो भी “धर्मनिरपेक्ष भारत” है वह १९४७ के बाद का ही है और संविधान ही उसका प्रथम और अंतिम पुराण है !!
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अब प्रतिक्रियात्मक हिंदुत्व की बात करते हैं, कोई भी विचार अपने आस पास की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता , जैसे आपने अभी कहा की हम धर्मनिरपेक्ष देश हैं , अपने दिल से पूछिए क्या सचमुच हम धर्मनिरपेक्ष हैं, जहाँ का प्रधानमंत्री खुलेआम ये कहता हो की इस देश के सभी संसाधनों  पर पहला हक़ मुसलमानों का है ? जिस देश में हिन्दुओं के सारे वैवाहिक कानून पच्चीसों बार बदल दिए जाएँ पर मुस्लिमों के अमानवीय शरिया कानूनों को हाथ तक नहीं लगाया जाये ? जिस देश में अलग से शरिया कोर्ट बना दी जाये ? जिस देश में आतंकवादियों को धर्म के आधार पर छोड़ देने की वकालत की जाये और उसके लिए इन्तेजाम किये जाएँ ? जिस देश में हिन्दू मंदिरों के ट्रस्टों की ७० % धनराशी सरकार निगल जाये और कट्टरता का पाठ पढ़ाते मदरसों पे अथाह पैसा लुटाया जाये ? जहाँ वोट बेंक के लालच में सारी हदें पार कर दी जाएँ ? जिस देश का सांसद भरी संसद में वन्दे मातरम का अपमान कर बहिर्गमन कर जाए और उसपर कोई कार्यवाही ना हो ? जहाँ ओवैसी जैसे गद्दार भगवन राम और सीता को गालियाँ देकर भी स्वतंत्र घुमते रहें ? जहाँ राम को काल्पनिक पात्र घोषित कर दिया जाए और राम सेतु को ८५ करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं को दरनिकार कर तोड़ने की तैय्यारी कर ली जाए ? जिस देश में पांच करोड़ से भी ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठी घुस आयें, अपने राशन कार्ड बनवा लें, आतंकवाद और तस्करी जैसे धंधों में लिप्त हों और सरकारें सोती रहें सिर्फ इसलिए क्योंकि वोटबेंक हैं वे उनके ? जिस देश में संविधान की भावना के खिलाफ जाकर धर्म आधारित आरक्षण बाँट दिया जाए ?
इतने सब के बाद भी आप आदर्श हिंदुत्व की अपेक्षा रखेंगे तो कैसे चलेगा दोस्त ? इतना सब होने के बाद भी आप जैसे अज्ञानी हैं जिन्हें समझाते समझाते ही सदियाँ बीत जाएँगी पर वे समझेंगे तब जब फिर से गुलाम होंगें और जूते खायेंगें ? 
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अज्ञानी :- आप लोग बस इस डर को ही बेचते फिरते हैं की ऐसा हो जायेगा वैसा हो जायेगा जबकि आप भी जानते हैं की ऐसा कुछ इस युग में संभव नहीं है , हम एक स्वतंत्र गणतंत्र हैं और रहेंगें 
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कट्टर :- भाई साहब , लगता है आपको अंक गणित से समझाना पड़ेगा , देखिये :-
१९४७ में 
हिन्दू जनसँख्या ३३ करोड़ (९० %) (सिक्ख , जैन , बोद्ध सब मिलाकर )
मुस्लिम जनसँख्या ३ करोड़ (८ %)
२००८ में 
हिन्दू जनसँख्या ८२ करोड़ ( ७३ .९ %) दर – ४.०७ % प्रति वर्ष 
मुस्लिम जनसँख्या २४ करोड़ ( २२.५ %) , दर – १३ .७ % प्रति वर्ष 
(पांच करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशियों को मिलाकर )
अगर हिन्दू और मुस्लिम अपने प्रति वर्ष की बढ़ने की दर समान बनाये रखें तो मात्र २०३५ तक मुस्लिम इस देश में बहुसंख्यक हो जायेंगें , ठीक ऐसे
हिन्दू जनसँख्या ९ ०.२ करोड़ (४ ६.९ %)
मुस्लिम जनसँख्या ९२.५ करोड़ ( ४८.२ %)
तब मेरे अज्ञानी मानवतावादी महाशय कल्पना कीजिये हालत वोट बेंक की राजनीती से कितने आगे जा चुकी होगी ? किस किस प्रकार की नाजायज़ मांगें पूरी हो चुकी होंगी ? सरकारों में किस किस स्तर तक पैठ हो चुकी होगी ? आतंकवाद किस हद तक बढ़ चुका होगा ? धार्मिक कट्टरता किस हद तक जा चुकी होगी ? इसके आगे की दास्ताँ तो मैं सुनाना भी नहीं चाहता वर्ना आप कहेंगे में बेवजह आपको डरा रहा हूँ 
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अज्ञानी :- आप लोगों का धंधा डराने से ही तो चलता है 
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अगर आपको इतना सब समझाने के बाद भी लगता है की मैं आपको डरा रहा हूँ तो थोडा विश्व मानचित्र उठाइए और देखिये मुस्लिम बहुल देशों का हाल, उदाहरण के लिए बोस्निया, लेबनान ,सीरिया ,गाजा ,पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और पढ़िए वहां रहते गैर मुस्लिमों पर होती यातनाएं ,आप कहें तो मैं उसमे भी आपकी मदद कर सकता हूँ !!
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अज्ञानी :- तो घूम फिर कर आप भी आ गए न अल्पसंख्यकों के खिलाफ , वही “प्रतिक्रियावादी हिंदुत्व” , इसीलिए तो हम नहीं पसंद करते आपको 
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कट्टर :- पहली बात , २५ प्रतिशत आबादी किसी भी देश में अल्पसंख्यक नहीं होती ,
दूसरी बात , इस देश में कितने ही अल्पसंख्यक हजारों सालों से विदेशों से विस्थापित होकर शांति से रह रहे हैं और खुश हैं, समस्या सिर्फ एक ही वर्ग के साथ क्यों हैं ?

तीसरी बात , मैं मुस्लिमों के खिलाफ नहीं हूँ पर पूरे विश्व में जो हो रहा है और इतिहास में जो हुआ है उसकी उपेक्षा कर शुतुरमुर्ग की तरह तूफ़ान आने पर रेत में सर धसाकर नहीं जीना चाहता !! रह रह कर मुझे इसका सबूत भी मिल जाता है जब भारत की साड़ी समस्याओं से उदासीन मुस्लिम भाई प्रदर्शन करते हैं इस बात के लिए की गाज़ा पट्टी में क्या हुआ , प्रदर्शन करते हैं बात के लिए की फिलिस्तीन इजराइल में क्या हुआ , ये बातें मेरा शक पुख्ता करती हैं की भारत उनके लिए सिर्फ एक धर्मशाला जैसा है , मैं गलत भी हो सकता हूँ पर कोई गलत सिद्ध होने का मौका ही नहीं दे रहा ?

इसके अलावा तुम भी  मेरे कुछ सवालों के जवाब  दे दो , ६५ सालों में मुस्लिमों का शिक्षा स्तर सबसे कम क्यों हैं ? सबसे कम महिला साक्षरता मुस्लिमों में ही क्यों हैं ? परिवार नियोजन के लिए सरकारे और इनके धार्मिक नेता कुछ करते क्यों नही ? मदरसों को आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से क्यों नहीं जोड़ा जाता ? कट्टरता का बीज बोने में धार्मिक नेता इतने आगे होते हैं , विकास के मुद्दों पर चुप क्यों होते हैं ? वन्दे मातरम जैसे मुद्दों पर विवाद क्यों होते हैं ? 
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अज्ञानी :- हाँ वो उनकी अपनी समस्या है 
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कट्टर :- नहीं ये पूरे देश की समस्या है , मैं बताता हूँ कैसे , क्योंकि जिस दिन मुस्लिम पढ़ लिख कर मुख्यधारा में आ गया , कट्टरता छोड़ देश से प्यार करने लग गया, उस दिन इन धार्मिक नेताओं की नेतागिरी तो ख़त्म ही हो जाएगी ? उस दिन भारत को दूसरा पाकिस्तान बनाने के सपने देखने वालों का क्या होगा ? दार-अस-सलाम का ख्वाब पालने वालों का क्या होगा ? दिल से पूछो तो , मुस्लिम समस्या नहीं हैं , समस्या हैं उनके धार्मिक नेता , समस्या है उनकी अपने धार्मिक ग्रन्थ की मनमुताबिक गढ़ी हुई व्याख्या , और यही सारी समस्या की जड़ है , मुस्लिम अपने धार्मिक नेताओं के चंगुल में इतनी बुरी तरह जकडे हुए हैं की पूरे विश्व में उनकी छवि एक जैसी बन गयी है हिंसक, उपद्रवी और धर्मांध और इसीलिए कई देशों ने अपनी समाज व्यवस्था को बचाने के लिए इनको काबू करने कई कड़े कदम उठाये हैं , हाल ही में रूस और फ़्रांस के उदाहरण हमारे सामने हैं !!
आज किसी और दिन से कहीं ज्यादा अपने हिन्दू होने की पहचान पर गर्व करने की ज़रुरत है क्योंकि ऐसा नहीं किया तो हमारे आस पास की ये भयावह विचारधाराएँ हमें और हमारे समाज को किसी भी दिन निगल जाएँगी और हम असहाय देखते रह जायेंगें,अब कोई विकल्प बचा ही नहीं है अपनी पहचान से रूबरू होने के अलावा !!ये धर्मनिरपेक्षता का नारा सिर्फ तुम्हे और तुम्हारी सहिष्णु विचारधारा को खत्म करने के काम आ रहा है , किसी और धर्म का अनुयायी इस ढकोसले को दिमाग में घुसने भी नहीं देता !!
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अज्ञानी :- तो आप ये चाहते हैं की हर हिन्दू को मुस्लिम के खिलाफ जंग छेड़ देनी चाहिए ?
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कट्टर :- नहीं उसकी नौबत नहीं आनी चाहिए, जिस दिन ८५ करोड़ हिन्दू एक स्वर में आत्म विश्वास और आत्म गौरव के साथ सिर्फ ये कहने का साहस कर ले की हाँ मैं हिन्दू हूँ और मुझे उस पर गर्व है , जिस दिन सेकुलरवाद का पाखंडी मुखौटा उतार फेंके, उस दिन आधी समस्या तो स्वतः ही ठीक हो जाएगी और बाकि बची समस्या उस दिन ठीक हो जाएगी जिस दिन राष्ट्रवाद का विचार सभी धर्म सम्प्रदायों, जातियों के विचारों से ऊपर आएगा , जिस दिन बाकि धर्म भी इस राष्ट्र और उसके इतिहास को अपना इतिहास मानेंगें और उसके अनुसार आचरण करेंगें
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अज्ञानी :- ठीक है अगर मैं मान भी लूं की हिन्दू होने पर गर्व होना चाहिए , तो ये सब तो मुझे मेरे दूसरे धर्मों के दोस्तों से अलग थलग कर देगा ?
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कट्टर :- राष्ट्र की चिंता ऊपर होनी चाहिए व्यक्तिगत संबंधों से , ये हमारा स्वार्थी स्वभाव है की हम सबसे पहले ये सोचते हैं की कोई भी व्यक्ति हमसे व्यक्तिगत रूप में अच्छा है या बुरा ? और वैसे सिर्फ हिन्दू होने पर गर्व करने पर अगर किसी मुस्लिम मित्र को आपत्ति हो रही है तो खुद भी एक बार मन में सोचिये की ऐसी सोच वाले मित्र की आपको जरूरत है या नहीं ?

                     “धर्मो रक्षति रक्षितः – धर्म की रक्षा करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा”
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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